Below is the Devanagari script of chapter 2 of Sanandh:
सनंध प्रकरण २ - सनंध आरबी की
कलाम आरबी हक रसूल ना, फआल कसीदे कलम ।
बोली अरबी सच है रसूल मेरे की, कर के साखियां कहत हों ।
लाकिन माय आरफो, मिन्हुम हिंद मुस्लिम ।। १ ।।
लेकिन, नहीं समझेंगे, इनमें हिंदके मुसलमान ।।
इसम्यो हिंद मुस्लिम, अना कलम सिदक ।
सुनो हिंदके मुसलमानों, मैं कहूं सच ।
मा कलिम अना किजब, मा कुंम इन्द कलिमा हक ।। २ ।।
ना कहूंगी मैं झूठ जो, तुम पास कलमा सांच है ।।
अल्लजी मुस्लिम असलू, अना हवा मरा कुंम ।
जो कोई मुस्लिम असल हैं, मेरा प्यार बहुत तुमसे ।
अना हाकी हकाईयां असलू, लिना इमाम इलंम ।। ३ ।।
मैं कहूं बातें असलकी, साथ मेरे इमामका ग्यान है ।।
लागिल हिंद मुस्लिम, अना कलिमो हिंद कलाम ।
खातर हिंदके मुसलमानों के, मैं कहूं हिंदकी बोली ।
अना कुल्ल सवा सवा, अना हुरम इमाम ।। ४ ।।
मुझको सब बराबर बराबर हैं, मैं हों औरत इमाम मेंह्दीकी ।।
हिंद कलाम जिद हवा अना, लागिल हिंद मुस्लिम ।
हिंदकी बोली ज्यादे प्यारी है, मुझे खातर हिंदके मुसलमानोंके ।
अल्लजी सिदक यकीन, हुब हक रसूल कदम ।। ५ ।।
जो कोई सच्चे यकीन वाले हैं, प्यार सांचा रसूल के कदमों पर ।।
बेन कुरान मकतूब, अल्लजी रसूल कबल ।
दरम्यान कुरानके लिख्या है, जो कि रसूलने आगे ही से ।
जाया मेहेदी कलम, लिसान लुगद बदल ।। ६ ।।
आए के मेंहेदी कहेगा, जुबांन बोल बदल कर ।।
वाहिद लिसान वाहिद लुगद, अल्लजी सेसमा उलगवर ।
एक जुबांन एक बोल, जो कुछ आसमान जमीन में हैं ।
बेन हिम इमाम लुकनत, लिसान लुगाद ला कादर ।। ૭ ।।
दरम्यान इनोंके इमाम मेहेदी तोतला, जुबांन बोलने से ना समरथ ।।
कुल्ल आदम ओ कुल्ल गिरोह, मा कुल सुर आ वाहिद ।
सारे आदमी और सब उमत जो कोई, है सबकी राह एक है ।
लुगा तरीक मा मिसलहू, कमा फास काल महंमद ।। ८ ।।
बोलना राह नहीं है उन जैसा, ऐसे जाहेर कह्या मुहम्मद साहब ने ।।
अल्लजी मकतूब हाकिमा, बेन कुरान कलाम ।
जो कि लिख्या है ऐसा, दरम्यान कुरान के वचन ।
हाला अना कएफ कलमो, लुगाद बदल इमाम ।। ९ ।।
अब मैं क्यों कर कहूं, एक बोल बिना इमाम मेंहदी ।।
हरफ कमा मकतूब, अल्लजी हक रसूल ।
सब्द जैसा कोई लिख्या है, जो सांचे रसूल अल्लाह ने ।
व ला इतरो मिन्हुंम लुगा, फआल इमाम कुल्ल कबूल ।। १० ।।
कदी न जावे इनमें से एक बोल, किए इमाम ने सब कबूल ।।
अल्लजी इमाम अगबू, हुब हस्ना हिंद मकान ।
जो इमाम मेंहेदी ने पसंद किया, प्यारी है वही हिंद की ठौर ।
कुल्लु लाए जाया कलाम गैर, मिसल हिंद इलाने कफयान ।। ११ ।।
कही न आवे बोली और मानिंद, हिंदके नहीं तो बस है ।।
लागिल मुस्लिम कुरब ना, अना फआली कुंम इस्हल ।
खातर मुस्लिम कबीले मेरे के, मैं कर देऊं तुम को सहल ।
अना कलिम कलाम कुंम, यालिक यकून कुम दीन सुगल ।।१२ ।।
मैं कहूं बोली तुम्हारी, ज्यों होवे तुम को दीन में सुख विलास ।।
END OF CHAPTER 2
सनंध प्रकरण २ - सनंध आरबी की
कलाम आरबी हक रसूल ना, फआल कसीदे कलम ।
बोली अरबी सच है रसूल मेरे की, कर के साखियां कहत हों ।
लाकिन माय आरफो, मिन्हुम हिंद मुस्लिम ।। १ ।।
लेकिन, नहीं समझेंगे, इनमें हिंदके मुसलमान ।।
इसम्यो हिंद मुस्लिम, अना कलम सिदक ।
सुनो हिंदके मुसलमानों, मैं कहूं सच ।
मा कलिम अना किजब, मा कुंम इन्द कलिमा हक ।। २ ।।
ना कहूंगी मैं झूठ जो, तुम पास कलमा सांच है ।।
अल्लजी मुस्लिम असलू, अना हवा मरा कुंम ।
जो कोई मुस्लिम असल हैं, मेरा प्यार बहुत तुमसे ।
अना हाकी हकाईयां असलू, लिना इमाम इलंम ।। ३ ।।
मैं कहूं बातें असलकी, साथ मेरे इमामका ग्यान है ।।
लागिल हिंद मुस्लिम, अना कलिमो हिंद कलाम ।
खातर हिंदके मुसलमानों के, मैं कहूं हिंदकी बोली ।
अना कुल्ल सवा सवा, अना हुरम इमाम ।। ४ ।।
मुझको सब बराबर बराबर हैं, मैं हों औरत इमाम मेंह्दीकी ।।
हिंद कलाम जिद हवा अना, लागिल हिंद मुस्लिम ।
हिंदकी बोली ज्यादे प्यारी है, मुझे खातर हिंदके मुसलमानोंके ।
अल्लजी सिदक यकीन, हुब हक रसूल कदम ।। ५ ।।
जो कोई सच्चे यकीन वाले हैं, प्यार सांचा रसूल के कदमों पर ।।
बेन कुरान मकतूब, अल्लजी रसूल कबल ।
दरम्यान कुरानके लिख्या है, जो कि रसूलने आगे ही से ।
जाया मेहेदी कलम, लिसान लुगद बदल ।। ६ ।।
आए के मेंहेदी कहेगा, जुबांन बोल बदल कर ।।
वाहिद लिसान वाहिद लुगद, अल्लजी सेसमा उलगवर ।
एक जुबांन एक बोल, जो कुछ आसमान जमीन में हैं ।
बेन हिम इमाम लुकनत, लिसान लुगाद ला कादर ।। ૭ ।।
दरम्यान इनोंके इमाम मेहेदी तोतला, जुबांन बोलने से ना समरथ ।।
कुल्ल आदम ओ कुल्ल गिरोह, मा कुल सुर आ वाहिद ।
सारे आदमी और सब उमत जो कोई, है सबकी राह एक है ।
लुगा तरीक मा मिसलहू, कमा फास काल महंमद ।। ८ ।।
बोलना राह नहीं है उन जैसा, ऐसे जाहेर कह्या मुहम्मद साहब ने ।।
अल्लजी मकतूब हाकिमा, बेन कुरान कलाम ।
जो कि लिख्या है ऐसा, दरम्यान कुरान के वचन ।
हाला अना कएफ कलमो, लुगाद बदल इमाम ।। ९ ।।
अब मैं क्यों कर कहूं, एक बोल बिना इमाम मेंहदी ।।
हरफ कमा मकतूब, अल्लजी हक रसूल ।
सब्द जैसा कोई लिख्या है, जो सांचे रसूल अल्लाह ने ।
व ला इतरो मिन्हुंम लुगा, फआल इमाम कुल्ल कबूल ।। १० ।।
कदी न जावे इनमें से एक बोल, किए इमाम ने सब कबूल ।।
अल्लजी इमाम अगबू, हुब हस्ना हिंद मकान ।
जो इमाम मेंहेदी ने पसंद किया, प्यारी है वही हिंद की ठौर ।
कुल्लु लाए जाया कलाम गैर, मिसल हिंद इलाने कफयान ।। ११ ।।
कही न आवे बोली और मानिंद, हिंदके नहीं तो बस है ।।
लागिल मुस्लिम कुरब ना, अना फआली कुंम इस्हल ।
खातर मुस्लिम कबीले मेरे के, मैं कर देऊं तुम को सहल ।
अना कलिम कलाम कुंम, यालिक यकून कुम दीन सुगल ।।१२ ।।
मैं कहूं बोली तुम्हारी, ज्यों होवे तुम को दीन में सुख विलास ।।
END OF CHAPTER 2
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